||किताब मोहब्बत की ||
मोहब्बत की किताब लिखते- लिखते
हम खुद ही गुम हुऐं ,
मोहब्बत का ऐलान करते- करते
खुद ही उसमें डुब गए ||
सोचा था, मोहब्बत को
कोरे कागज़ पे बेनकाब कर दूॅं,
पर कागज़ ही शरमा गए ||
तब सोच में पड गए
एैसा क्या लिख दिया हमनें,
तब जा के पता चला की
कलम़ को भी कागज़ से मोहब्बत है ||
मोहब्बत का किताब लिखते- लिखते
कलम़ ने ख़ुद को बेनकाब कर दिया,
जिस्से आज कागज़ भी कलम़ के बिना
अधुरा है ||
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